दोस्तों बचपन से ही हम एक कहावत सुनते आए हैं कि हम जैसा सोचते हैं ठीक वैसा ही बन जाते हैं। यह कहावत पूरी तरह से सही भी है क्योंकि हमारा माइंड एक वक्त में एक ही विचार कर सकता है - पॉजिटिव या नेगेटिव।
.jpg)
पॉजिटिव थिंकिंग अर्थात सकारात्मक सोच हमारे जीवन में बहुत मायने रखती है क्योंकि इसकी मदद से हम बड़ी-बड़ी कठिनाई को भी पार कर सकते हैं। जबकि नेगेटिव सोचने वालों को चारों तरफ दुख और समस्या ही दिखाई देती है।
जिस प्रकार घोर अंधेरे में भी एक छोटा सा दीपक प्रकाश कर देता है, ठीक उसी प्रकार आपका एक सकारात्मक विचार अर्थात पॉजिटिव विचार आपको दुखों के अंधेरे से बाहर ले आता है। दोस्तों हमेशा यह सोचें कि आपका गिलास आधा भरा हुआ है, ना कि आधा खाली है। इसी बात को अच्छे से समझने के लिए आइए सुनते हैं यह सुंदर कहानी।
परिवर्तन की कहानी
किसी नगर में एक पति-पत्नी रहते थे। उनकी शादी को 25 वर्ष बीत चुके थे। एक जवान बेटा भी था। पति किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था और अब रिटायर्ड हो चुका था। दोनों पति-पत्नी वृद्धावस्था में पहुंच चुके थे, लेकिन फिर भी दोनों का एक दूसरे के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ था।
खैर, समय का पहिया इसी तरह गुजरता जा रहा था। कुछ समय के पश्चात भाग्य ने करवट बदली और पति भयंकर रूप से बीमार पड़ गया। कुछ समय तक उसका डॉक्टरी इलाज चलता रहा। जब दवा दारू से काम ना चला तो मजबूरन डॉक्टर को उसका ऑपरेशन करना पड़ा। आखिर एक लंबी इलाज के पश्चात किसी तरह उसकी जान बच गई।
लेकिन उसकी इस खतरनाक बीमारी में उसकी पत्नी एक साई की तरह उसके साथ रहकर उसकी सेवा करती रही। और इस तरह दोनों पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति और भी ज्यादा समर्पित हो गए।
लेकिन इस बेहद लंबी और खतरनाक बीमारी ने पति को मानसिक और शारीरिक रूप दोनों से ही बेहद कमजोर बना दिया। फल स्वरूप पति का मन निराशा से भर उठा और वह हमेशा दुखी और उदास रहने लगा। वह सदा ही अपनी बीमारी के बारे में सोचता रहा और फिर आंसू बहाता रहता। इस प्रकार उसके दिमाग में सदा नेगेटिव थॉट्स अर्थात नकारात्मक विचार ही आते रहते थे। इन नकारात्मक विचारों ने धीरे-धीरे उसे डिप्रेशन का मरीज बना दिया।
पति को इस प्रकार डिप्रेशन में देखकर पत्नी तड़प उठी। वह पति को इस दुख से बाहर लाना चाहती थी। आखिर में उसने एक उपाय सोचा कि क्यों ना पति को किसी हिल स्टेशन पर लेकर जाया जाए। हो सकता है सुंदर पहाड़ों की छटा देखकर पति का मन खुश हो जाए। और यही सोचकर वह एक सप्ताह का प्लान बनाकर पति के साथ एक खूबसूरत हिल स्टेशन पर जा पहुंची।
हिल स्टेशन की खूबसूरत पहाड़ियों और वादियों में एक नमी थी जो मन को बहुत सुखद एहसास दे रही थी। लेकिन उस प्राकृतिक छटा और सौंदर्य को देखकर भी पति की मानसिक दशा में कोई परिवर्तन नहीं आया। वह हर समय गुमसुम सा बैठा रहता और सदा नेगेटिव ही सोचता रहता।
वह बातचीत जिसने सब कुछ बदल दिया
यह देखकर पत्नी ने इस विषय पर पति से बात करने की ठानी। और एक दिन उसने बहुत ही प्यार से पति से पूछा, "क्या बात है? तुम इतनी सुंदर पहाड़ियों में आकर भी दुखी क्यों हो? आखिर तुम क्या सोचते रहते हो?"
पति ने एक उबासी ली और धीरे से बोला, "प्रिय, बात ही उदासी वाली है। मेरी बीमारी कितने लंबे समय तक चली। मेरा ऑपरेशन हुआ जिसमें कि एक लाख रुपये खर्च हो गया। मेरा गॉल ब्लैडर निकाल दिया गया। इस बीमारी ने मुझे कितना कमजोर बना दिया। और तो और, इसी वर्ष मेरे बेटे का एक्सीडेंट हो गया जिसमें कि उसके दाएं पांव की हड्डी टूट गई। और सबसे दुख की बात तो यह है कि इसी साल मेरे पिता की भी मृत्यु हो गई। एक साथ इतने सारे पहाड़ मुझ पर टूट पड़े। अब तुम ही बताओ, इतने सारे दुखों को झेलने के पश्चात मैं खुश कैसे रह सकता हूं?"
पति की बात सुनकर पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हें याद है उस गॉल ब्लेडर की पथरी के कारण तुम्हारे पेट में कितना भयंकर दर्द होता था? तुम्हें तो शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि ऑपरेशन के पश्चात तुम्हें उस जानलेवा दर्द से मुक्ति मिल गई।"
पत्नी की बात सुनकर पति हैरान हो गया। लेकिन उसने इस बात को घुमा दिया और पूछा, "लेकिन हमारे पिताजी की मृत्यु और बेटे का इतना बड़ा एक्सीडेंट? वह सब क्यों हुआ?"
पत्नी फिर मुस्कुराते हुए बोली, "पिताजी के निधन का मुझे भी दुख है, लेकिन प्रिय, यह भी तो सोचो कि पिताजी ने अपना पूरा जीवन शान से जिया। कभी किसी पर आश्रित नहीं हुए। अंतिम समय में भी उनके प्राण बिना किसी कष्ट के, बिना किसी बीमारी के कितनी आसानी से निकल गए।
वरना वृद्धावस्था में तो लोग सालों तक बिस्तर पर तड़पते रहते हैं, लेकिन फिर भी उनके प्राण नहीं निकलते। लेकिन हमारे पिताजी बिना किसी बीमारी के, बिना किसी कष्ट के इस दुनिया से विदा हुए। ना ही उन्होंने किसी से अपनी सेवा करवाई। हमें तो इस बात के लिए ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए।"
पति फटी आंखों से अपनी पत्नी की बातें सुनता जा रहा था। अब पत्नी ने पति के हाथ को अपने हाथ में लिया और बोली, "हमारे बेटे के एक्सीडेंट ने मुझे भी दुखी कर दिया था। लेकिन शायद हमारे कुछ अच्छे कर्म थे और शायद यह ईश्वर की कृपा ही थी कि इतने भयानक एक्सीडेंट के बाद भी हमारे बेटे के केवल पांव की हड्डी ही टूटी। उसका पूरा शरीर सही सलामत रहा। वरना इतने बड़े एक्सीडेंट के पश्चात वह अपाहिज भी हो सकता था। क्या इस बात के लिए हमें ईश्वर का शुक्राना नहीं करना चाहिए?"
पत्नी की सकारात्मक बातें सुनकर पति की सोच एकदम से बदल गई। उसके भीतर जमा निराशा का अंधकार एक पल में छट गया और मन में उत्साह तथा खुशी की लहरें उठने लगीं। उसने जोश में आकर पत्नी को बाहों में भर लिया और खुशी से झूम उठा। और उसके पश्चात वह अपनी पत्नी के साथ खुशी-खुशी रहने लगा।
सकारात्मकता की परिवर्तनकारी शक्ति
दोस्तों, यह है सकारात्मक सोच अर्थात पॉजिटिव थिंकिंग की पावर जो हमारे जीवन को पूरी तरह से बदल देती है। एक दुख और निराशा में डूबे व्यक्ति को खुशहाल बना देती है।
इसलिए दोस्तों, आप भी सदा पॉजिटिव सोचिए। जो कुछ ईश्वर ने आपको दिया है उसके बारे में सोचिए, ना कि उन सब के बारे में जो कि आपको नहीं मिला। आभारी रहें और आप पाएंगे कि सकारात्मक सोच आपके जीवन के सबसे अंधेरे क्षणों को भी प्रकाशित करने की शक्ति रखती है।